""शख्सियत,ए 'लख्ते-जिगर, कहला नसका,,
जन्नत,,के धनी"पैर,, कभी सहलान सका ।
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दुध, पिलाया उसने छातीसे निचोड़कर,,
मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लासपानी पिला नसका ।
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बुढापे का "सहारा,, हूँ'अहसास' दिला नसका,,
पेट पर सुलानेवाली को 'मखमल, पर सुला नसका ।
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वो 'भूखी, सो गई'बहू, के 'डर, से एकबार मांगकर,,
मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिलान सका ।
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नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभीमिला न सका,,
वो 'दर्द, सहती रहीमें खटिया परतिलमिला न सका।
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जो हर " पल " 'ममता, के रंग पहनातीरही मुझे,,
उसे " दिवाली " पर दो'जोड़, कपडे सिलान सका ।
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"बिमारबिस्तर से उसे'शिफा, दिला नसका,,
'खर्च के डरसे उसे बड़ेअस्पताल,ले जान सका ।
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"माँ" के बेटा कहकर"दम,, तौडने बाद सेअब तक सोचरहा हूँ,,
'दवाई, इतनी भी"महंगी,,न थीके मैं लाना सका...""
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